Thursday, November 19, 2009

Mahngai

फल व सब्जियों में महंगाई के लिए कम उपज को कोसना बंद कीजिये। पिछले छह महीने के दौरान फल व सब्जियों का उत्पादन भी बढ़ा है और मंडियों में आवक भी। लेकिन प्याज, टमाटर व आलू से लेकर हरी सब्जियां और सेब से लेकर पपीता तक की कीमतें आम उपभोक्ता के हाथ जला रही हैं। फल व सब्जियों का बाजार मुनाफाखोरों के हाथ में है और सरकार पूरी तरह असहाय है।

राष्ट्रीय हार्टीकल्चर बोर्ड के 973 बाजारों के ताजा आंकड़े केंद्र व राज्य सरकारों को आईना दिखा रहे हैं। इन बाजारों में फल व सब्जियों की रोजाना की आवक और उनकी दैनिक कीमतें दर्ज की जाती हैं। फल और सब्जी बाजार की ताजा स्थिति ने मांग व आपूर्ति के सिद्धांत को ध्वस्त कर दिया है। आपूर्ति घटे या बढ़े, कीमतें सदा बढ़ती ही रहती हैं। कई सब्जियों व फलों की फसल के दौरान महीने 25 से 30 फीसदी तक आपूर्ति बढ़ी लेकिन कीमतें घटने के बजाय उछल गई।

सब्जियों में सबसे अहम आलू के खुदरा मूल्य 26 से 30 रुपये प्रति किलो की ऊंचाइयां छू रहे हैं। मार्च 2009 में देश के सब्जी बाजारों में आलू की कुल आवक 10.78 लाख टन हुई थी। तब थोक बाजार में आलू 480 रुपये क्विंटल बिका। लेकिन जुलाई में आलू की आवक 11.45 लाख टन तक पहुंच गई, जिससे मूल्य घटना चाहिए था। पर हुआ इसके उलट, आलू का मूल्य दोगुने से भी अधिक यानी 1016 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।

चर्चित सब्जियों में शुमार प्याज के हाल भी कुछ अच्छे नहीं रहे। जुलाई के मुकाबले अगस्त में प्याज की आवक में 20 हजार टन की वृद्धि हुई, लेकिन मूल्य घटने के बजाए बढ़ गये। हद तो अक्टूबर महीने में हुई, जब सामान्य आवक के बावजूद कीमतें 50 फीसदी से भी अधिक बढ़ गई। इस माह के दौरान प्याज की कीर्मत 881 रुपये क्िवटल से बढ़कर 1469 रुपये प्रति क्िवटल हो गई। लेकिन यह भाव थोक बाजार का है, खुदरा बाजार तो वैसे भी बेकाबू रहता है जहां आलू व प्याज के मूल्य 26 से 30 रुपये प्रति किलो हैं। सबसे सस्ता रहने वाला सीताफल या कद्दू भी अच्छी आपूर्ति के बावजूद खुदरा बाजार में 20 रुपये किलो तक पहुंच गया।

महंगाई के चलते फलों के रंग और भी सुर्ख हुए हैं। सेब के मूल्य जनवरी से लेकर अक्टूबर तक बढ़े ही हैं, जबकि मंडियों में इनकी आवक में पर्याप्त सुधार हुआ है। सितंबर व अक्टूबर के बीच मंडियों में सेब की आवक समान रही है, लेकिन मूल्य में 15 फीसदी की वृद्धि हुई है। अप्रैल व मई में नीबू की फसल बाजार में पहुंचती है। आपूर्ति के 40 फीसदी बढ़ने के बावजूद मूल्य घटे नहीं, बल्कि 25 फीसदी बढ़ गये। आमतौर पर सस्ता रहने वाला पपीता भी इन महीनों में रंग दिखा गया। बाजार में आपूर्ति बढ़ने के साथ कीमतें भी बढ़ गई।

Wednesday, May 14, 2008

वेलकम बैक बालाजी

मज़ा आ गया। इसे कहते हैं वापसी। लगभग ढाई साल बाद मैदान में उतरे लक्ष्मीपति बालाजी ने दिखा दिया की उनमें आज भी उतना ही दम है और उन्हें टीम में लेकर चेन्नई ने कोई गलती नहीं की है। आईपीएल की पहली हैटट्रिक लेकर उन्होनें अपने समर्थकों को खुश कर दिया ।
लगभग साढे तीन साल पहले बालाजी और पठान की जोड़ी ने धमाल मचा दिया था। एक दायें हाथ का बोलर और दूसरा बायें हाथ का, और बल्लेबाजों की नाक में दम कि बनायें तो रन कहाँ बनायें। पर ग्रेग चैपल ने इन दोनों प्रतिभावान बोलरों की प्रतिभा का नास पीट दिया। पठान को बोलर की बजाय बल्लेबाज़ बनाने की कोशिश ने उसका करियर ख़राब कर दिया और उनके उल्टे सीधे तरीकों ("प्रयोगों") ने बालाजी को तो टीम से ही बाहर करवा दिया। उस पर भी हाल वाही ढाक के तीन पात ।
वह तो अच्छा हुआ की चैपल यहाँ से चले गए वरना भारत की क्रिकेट टीम की हालत और भी ख़राब हो जाती।
पर अंत भला तो सब भला। चैपल ("जी"?) चले गए और भारत ने उनके जाने की खुशी ज़ोरदार तरीके से मनाई।
अब बालाजी ने वापस आकर और ऐसी ज़बरदस्त पर्फोर्मैंस देकर अपने समर्थकों में खुशी की लहर बिखेर दी है।
उन्हें मेरी भी बधाई।

Friday, May 2, 2008

"आह !!! बड़ी गर्मी है और ऊपर से ये बिजली वाले भी क़यामत ढा रहे हैं। काश भगवान बारिश करवा दे और कुछ राहत मिले। "
हमारे देश में गर्मी का मौसम शुरू होते ही इस प्रकार के जुमले आम हो जाते हैं। कभी तो सर्दी इतनी भयंकर पड़ती है की लोगों जान ले लेती है और कभी गर्मी में चलने वाली लू लोगों के दम खींचने लगती है।
पर कुछ साल पहले तक ये हालात नहीं थे। न तो इतनी गर्मी पड़ती थी और न ही इतनी सर्दी, परन्तु पिछले पाँच - छः सालों से मौसम के हालात गंभीर हो गए हैं। पर अब तो भारत के एक हिस्से में तो भयंकर बाढ़ आती है और दूसरे हिस्से में सूखा लोगों और जानवरों की जान लेनी शुरू कर देता है। कुछ अनुभवी लोग इस बात पर ध्यान दें कि जब से हमारे देश में विदेशी गतिविधियाँ बढ़ी हैं ( विशेषकर पिछली दो सरकारों के कार्यकाल में), हमारे देश का पर्यावरण कुछ ज्यादा ही ख़राब हो गया है। जहाँ तक मेरी समझ में कारण आता है कि इन विदेशी कंपनियों ने अपने पुराने कारखाने, जो उनके देश में बंद करने पड़ रहे थे, को भारत भेजा ताकि उनको भारी नुकसान ना हो। हमारी सरकार भी खुश हो रही थी कि हमारे देश में विदेशी निवेश हो रहा है। उसने ये ध्यान देना कतई ज़रूरी नहीं समझा कि हमारे देश में पुरानी तकनीक की मशीनरी लाकर देश का पर्यावरण ख़राब करने की कोशिश हो रही है। इन कंपनियों ने अपने पुराने कारखानों को यहाँ ( भारत में) लगाकर यहाँ के स्रोतों का शोषण किया और इस प्रदूषण का सेहरा भारत के नाम बंधा।
काश !! हमारी सरकार में कुछ ऐसे लोग न बैठे होते जो अपने फायदे के लिए भारत को होने वाले नुकसान से अपनी आँखें ना मूँद लेते। रही सही कसर हमारी सरकारी नीतियों और हम लोगों ने पूरी कर दी है। हम लोगों ने जानते - बूझते अपने पर्यावरण ख़ुद ख़राब करने में कोई कसार नहीं छोडी। जहाँ चाह वहां के पेड़ काट डाले, नदियों को प्रदूषित कर दिया, समय बचाने के नाम पर वाहनों का जबरदस्त जखीरा खड़ा कर दिया और प्रदूषण पैदा करने वाले पाँचवे नम्बर के देश ( लिंक १ और लिंक दो ) के रूप में अपने देश को खड़ा कर दिया। परन्तु चिंता की कोई बात नहीं, हमारे देश के कुछ अमीर लोगों ने तो ठंडी विदेशी जगहों को घूमने का कार्यक्रम भी बना लिया होगा। आख़िर इस देश के गरीब लोगों को जिंदगी जीने के लिए कमाना भी ज़रूरी है। उनका तो रोज़ का कुआँ खोदना और रोज़ का पानी पीना।
अब भी समय है। हम लोगों को चेतना होगा, हमें ये वचन लेना होगा कि हम कम से कम प्रदूषण फैलाएंगे और अधिक से अधिक पेड़ पौधों को लगाकर प्रदूषण कम करने का प्रयत्न करेंगे।

Thursday, May 1, 2008

भाई साहब, आज कल खाद्यान्न पर कुछ ज्यादा ही मारा - मारी हो रही है। पता चला है कि दुनिया भर में खाद्यान्न संकट बढ़ता ही जा रहा है। कुछ विश्लेषक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि विश्व के पास केवल ४ दिनों का अनाज बाकी है। इस संकट का एक कारण अनाज की बढ़ती मंहगाई भी है।

असल में, भारत में इसकी शुरुआत काफी समय पहले ही हो गई थी, जब भारत सरकार ने वायदा व्यापार में अनाज को शामिल करने की छूट दे दी थी। परन्तु अब समय आ गया है की भारत सरकार अपने इस कदम को वापस खींच ले और वायदा व्यापार में से सभी तरह के अनाजों, दलहनों, तिलहनों, तथा मोटे अनाजों के व्यापार को समाप्त करे वरना देश में भुखमरी की हालत पैदा हो सकती है।

इसके साथ ही सरकार का ये भी दायित्व बनता है कि वो इस बात को सुनिश्चित करे कि गरीब परिवारों को मिलने वाले राशन को ब्लैक में न बेचा जा सके।

मुझे लगता है की कुछ लोग हमारे भारत को दोबारा बांटना चाहते हैं। इनमें से कुछ अपने को दक्षिण भारत का महान नेता कहलवाने के लिए ही ये सब कुछ कर रहे हैं। मज़े की बात है की इनकी देखा-देखि और लोग भी इस सब में शामिल हो रहे हैं।
शायद ये सब लोग नहीं जानते की इस तरह का घटिया प्रचार कुछ दिनों तक ही सीमित रहता है। बाद में उन्ही को इससे नुकसान होना शुरू हो जाएगा। तब उन्हें समझ में आएगा कि ये सब कितना घटिया है।
परन्तु अभी तो हम केवल प्रार्थना ही कर सकते हैं कि भगवन इन लोगों को सद्बुद्धि दे और उनको ये बात समझ में आ जाए कि " भारत अखंड है और अखंड ही रहेगा। "

Wednesday, April 30, 2008

आजकल श्रीसंत और हरभजन के विवाद को लेकर काफी चर्चा हो रही है। हरभजन पर इस विवाद को लेकर काफी कुछ झेलना पड़ा जिसमे हरभजन को आईपीएल के अपने बाकी मैचों से बाहर होना पड़ा और लगभग पौने तीन करोड़ रुपयों से भी हाथ धोना पड़ा।
मुझे लगता है की भज्जी ( हरभजन) को कुछ ज्यादा ही कड़ी सज़ा दे दी गई है। मैं मानता हूँ कि उन्हें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए था। श्रीसंत भी कुछ कम नहीं है। हम सब उनकी आक्रामकता के बारे में काफी कुछ जानते हैं और ऑस्ट्रेलिया के विरूद्ध श्रंखला में उनकी इस आक्रामकता का हम भारतीयों ने काफी स्वागत किया था। पर उन्हें किसी भी खिलाड़ी को इतना परेशान नहीं करना चाहिए था कि वो कुछ असामान्य हरकत कर बैठे।
आशा है कि वो आइन्दा इस बात का ध्यान रखेंगे और अपनी आक्रामकता में कुछ कमी लाने का प्रयास करेंगे।

Welcome

नमस्ते,
आज मैंने अपने ब्लॉग की शुरुआत की है।
आशा है कि आप लोग मेरे उत्साह को अपने अमूल्य बातों से बढायेंगे।
धन्यवाद।